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मीराबाई का जीवन परिचय (Mirabai Ka Jivan Parichay)

मीराबाई का जीवन परिचय

मीराबाई का जीवन परिचय : "पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो" यह मधुर भजन सुनते ही मन में एक अलौकिक शांति का अनुभव होता है आपको बता दें कि इस भजन की रचयिता हैं - मीराबाई, जिन्होंने अपने प्रेम और भक्ति से न केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि लाखों लोगों के जीवन को भी प्रेरित किया।

यह लेख आपको मीराबाई के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराएगा और आपको उनकी भक्ति और प्रेम की गहराई का अनुभव कराएगा।

तो आइए, मीराबाई की अद्भुत कहानी को पढ़ने के लिए तैयार हो जाइए!

मीराबाई - एक संक्षिप्त परिचय

नाम मीराबाई
जन्म 1498 ई.
जन्म-स्थान कुडकी गांव, मेड़ता, राजस्थान
माता-पिता रतन सिंह (पिता) और वीरकुंवरी (माता)
पति भोजराज, मेवाड़ के राजकुमार
गुरु रैदास, रविदास
भाषा ब्रजभाषा, अवधी, राजस्थानी
प्रसिद्ध रचनाएं "पायो जी मैंने मन रंगायो", "जो तुम तोड़ो पिया", "मेरे तो गिरधर गोपाल", "यह तो बहुत ही भई भारी"
प्रमुख विशेषताएं कृष्ण भक्ति, सरल भाषा, संगीतमयता, प्रेम और विरह की भावनाएं
मृत्यु सन् 1546 ई.
मृत्यु स्थान द्वारका, गुजरात
साहित्यिक काल भक्तिकाल


मीराबाई का जन्म, परिवार और बचपन (Mirabai Ka Jivan Parichay)

मीराबाई, जिनका जन्म 1498 ईस्वी में राजस्थान के मेड़ता के पास कुडकी गांव में हुआ था, एक प्रसिद्ध कृष्ण भक्त और कवियत्री थीं। आपको बता दें कि मीराबाई का जन्म एक प्रतिष्ठित राजपूत परिवार में हुआ था। उनके पिता, रतन सिंह राठौड़, मेड़ता के राठौड़ राजा वीरमदेव के पुत्र थे। उनकी माता, वीरकुंवरी, जोधपुर के जोधा राजा राव दूदा की पुत्री थीं।

आपको बता दें कि मीराबाई के परिवार में भी भगवान कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति थी। उनके दादा, वीरमदेव ने कृष्ण मंदिरों का निर्माण करवाया था और उनके पिता रतन सिंह भी कृष्ण भक्त थे। मीराबाई का बचपन बहुत ही सुखद और समृद्ध था। उन्हें अच्छी शिक्षा दी गई और उन्हें कला, संगीत और नृत्य में प्रशिक्षण दिया गया। बचपन से ही मीराबाई भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति रखती थीं। वे अक्सर मंदिरों में जाती थीं और कृष्ण के भजनों को सुनती थीं। मीराबाई का बचपन कृष्ण भक्ति और सांस्कृतिक गतिविधियों में बीता।

शिक्षा और रुचियाँ

मीराबाई को बचपन से ही ज्ञान और कला के प्रति उनकी गहरी रुचि थी। उन्हें शिक्षा और प्रशिक्षण विभिन्न विषयों में दिया गया था, जिसमें धार्मिक ग्रंथों, भाषाओं, संगीत, नृत्य, कला और शिल्प इत्यादि शामिल थे। मीराबाई ने अपनी शिक्षा का सदुपयोग किया और अपनी कला का उपयोग भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को व्यक्त करने के लिए किया।

विशेषतः मीराबाई को संस्कृत, ब्रजभाषा और अवधी भाषाओं में शिक्षा दी गई थी। उन्होंने हिंदू धर्म के ग्रंथों, जैसे रामायण और महाभारत, का अध्ययन किया। यह शिक्षा उनके जीवन और रचनाओं में परिलक्षित होती है।

उनकी रचनाओं में धार्मिक ज्ञान, भाषाओं की कुशलता और गहरी भावनाएं व्यक्त होती हैं। मीराबाई की सबसे बड़ी रुचि भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति थी। उनकी रचनाओं में भी कृष्ण के प्रति प्रेम, भक्ति और विरह की भावनाएं अत्यंत सुंदर ढंग से व्यक्त हुई हैं। इसके अलावा मीराबाई को संगीत और नृत्य में भी गहरी रुचि थी। उन्होंने अपनी रचनाओं में संगीत का प्रयोग किया और उन्हें नृत्य के साथ भी प्रस्तुत किया। मीराबाई को कला और शिल्प में भी रुचि थी। उन्होंने चित्रकला, मूर्तिकला और अन्य कला और शिल्पों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।

यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि मीराबाई अपनी शिक्षा और रुचियों के कारण ही एक महान कवियत्री और कृष्ण भक्त बन सकीं।

मीराबाई का वैवाहिक जीवन

आपको बता दें कि मीराबाई का विवाह 1516 ईस्वी में मेवाड़ के राजा राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ हुआ था। उस समय मीराबाई केवल 11 वर्ष की थीं और भोजराज 18 वर्ष के थे। यह विवाह राजनीतिक कारणों से आयोजित किया गया था। यह ज्ञात होगा कि मीराबाई बचपन से ही भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति रखती थीं और उन्होंने अपना जीवन कृष्ण भक्ति को समर्पित कर दिया था।

विवाह के बाद भी मीराबाई ने अपनी भक्ति जारी रखी। मीराबाई के लिए वैवाहिक जीवन सुखद नहीं था। आपको बता दें कि 1518 ईस्वी में भोजराज की युद्ध में मृत्यु हो गई थी जिसके बाद मीराबाई ने अपना जीवन पूरी तरह से कृष्ण भक्ति को समर्पित कर दिया था, हालांकि मीराबाई का वैवाहिक जीवन बहुत कठिन था, लेकिन उन्होंने अपनी भक्ति को कभी नहीं त्यागा।

मीराबाई में कृष्ण भक्ति की शुरुआत

मीराबाई में कृष्ण भक्ति की शुरुआत बचपन से ही हो गई थी। आपको बता दें कि जब वे केवल 3 वर्ष की थीं, तब उन्होंने अपनी माता से पूछा था कि "माँ, मेरा पति कौन होगा?" इस पर उनकी माता ने उत्तर दिया, "तुम्हारा पति गिरधर गोपाल होगा।" यह बात मीराबाई के मन में बस गई और उन्होंने अपना जीवन कृष्ण भक्ति को समर्पित कर दिया।

इसके साथ ही मीराबाई का परिवार भी कृष्ण भक्त था। मीराबाई का जन्म और पालन-पोषण एक धार्मिक वातावरण में हुआ था। इस प्रकार मीराबाई की कृष्ण भक्ति बचपन से ही शुरू हो गयी थी।

मीराबाई के गुरु और उनका योगदान

आपको बता दें कि मीराबाई के गुरु रविदास जी थे। रविदास एक भक्त कवि थे जो 15वीं और 16वीं शताब्दी में भारत में रहते थे। रविदास का जन्म एक चमार परिवार में हुआ था, जो उस समय एक निम्न जाति मानी जाती थी। रविदास ने अपनी रचनाओं में जातिवाद और सामाजिक भेदभाव की आलोचना की। वे भक्ति आंदोलन के एक महत्वपूर्ण नेता थे।

आपको बात दें कि रविदास ने ही मीराबाई को कृष्ण भक्ति का मार्ग दिखाया, भक्ति आंदोलन के विचारों से परिचित कराया,  जातिवाद और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया और साथ ही अपनी रचनात्मकता को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित भी किया। मीराबाई के जीवन और रचनाओं पर रविदास का गहरा प्रभाव था।

आपको बता दें कि मीराबाई के गुरु के बारे में कुछ विवाद भी हैं। कुछ लोग मानते हैं कि उनके गुरु रविदास थे, जबकि अन्य लोग मानते हैं कि उनके गुरु संत रैदास थे। हालांकि विषय पर कोई निश्चित प्रमाण नहीं है। यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मीराबाई ने अपने गुरु का नाम अपनी किसी भी रचना में नहीं लिखा है।

मीराबाई की रचनाएँ (Mirabai Ki Rachna)

पद

मीराबाई की सबसे प्रसिद्ध रचनाएँ उनके पद हैं। उन्होंने इन पदों में भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति, प्रेम और विरह को व्यक्त किया है। उनके पदों में सरल भाषा, गहरी भावनाएं और संगीतमयता है। मीराबाई के कुछ प्रसिद्ध पदों में निम्नलिखित पद शामिल हैं -

  • पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो
  • नैन नु भरिआ मोती
  • मेरे तो गिरधर गोपाल
  • जो तुम तोडो पिया
  • सांवरे से मिलन की आस
  • प्रेम रंग में रंगी
  • मन रे तू काहे न धीर धरे
  • मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
  • तोरी सूरत मेरे मन बस गई
  • मोहे पिया मिलन की आस

भजन (Mirabai Ke Bhajan)

मीराबाई ने भजन कई भी लिखे हैं। उनके भजनों में भगवान कृष्ण की स्तुति और महिमा का वर्णन है। भजनों में भी सरल भाषा, गहरी भावनाएं, और संगीतमयता है। मीराबाई के कुछ प्रसिद्ध भजन निम्नलिखित है -

  • आज बिहारी आवे
  • हरि तुम हरो जन की भीर
  • मन रे पासि हरि के चरन
  • जय जय गिरधर गोपाल
  • जोगी मत जा
  • मेरे तो गिरधर गोपाल
  • प्रभु मोरे अवगुण चित न धरो
  • मोहन के प्रेम में पागल
  • हरि नाम कीर्तन से सुख पावे
  • द्वारकाधीश मेरे गिरधर गोपाल

रीतिग्रंथ

मीराबाई ने रीतिग्रंथ भी लिखे हैं। रीतिग्रंथ भक्ति के सिद्धांतों और दर्शन पर आधारित रचनाएँ होती हैं। मीराबाई के रीतिग्रंथों में भक्ति के विभिन्न पहलुओं का वर्णन है। मीराबाई के कुछ प्रसिद्ध रीतिग्रंथ निम्नलिखित है -

  • राग गोविन्द सोरठ
  • नरसी जी रो माहेरो
  • गीत गोविन्द की टीका

अन्य रचनाएँ

मीराबाई ने कुछ अन्य रचनाएँ भी लिखी हैं, जैसे कि -

  • स्तुतियाँ
  • प्रार्थनाएँ
  • कविताएँ

आपको बता दें कि मीराबाई की रचनाओं का कोई निश्चित संग्रह नहीं है। उनकी रचनाओं को विभिन्न लोगों द्वारा विभिन्न समयों में संग्रहित किया गया है। मीराबाई की रचनाओं की भाषा और शैली भी भिन्न-भिन्न है। यह भी जानना जरूरी है कि मीराबाई की रचनाओं की प्रामाणिकता को लेकर भी कुछ विवाद है। कुछ विद्वानों का मानना है कि कुछ रचनाएँ मीराबाई की नहीं हैं, बल्कि बाद में उनके नाम से जोड़ी गई हैं।

मीराबाई की भाषा - शैली

मीराबाई की रचनाओं की भाषा सरल और सहज है। आपको बता दें कि मीराबाई की रचनाओं की मुख्य भाषा ब्रजभाषा है। जबकि मीराबाई की रचनाओं में राजस्थानी भाषा का भी प्रभाव है। आपको बता दें कि मीराबाई की रचनाओं में गुजराती, पंजाबी और अवधी भाषाओं का भी प्रभाव है।

शैली की बात करें तो मीराबाई की रचनाओं की मुख्य शैली भक्तिमय है जिनमें गीतात्मकता और संगीतमय शैली भी दिखाई पड़ती हैं।

मीराबाई के भक्ति पदों में प्रेम और विरह

मीराबाई के भक्ति पदों में प्रेम और विरह की भावनाएं अत्यंत सुंदर ढंग से व्यक्त हुई हैं। मीराबाई के प्रेम पदों में भगवान कृष्ण के प्रति उनका प्रेम और समर्पण झलकता है। उनकी रचनाओं में प्रेम की विभिन्न अवस्थाएं, जैसे कि आकर्षण, अनुराग, मिलन और विरह व्यक्त हुई हैं। मीराबाई के प्रेम पदों में प्रेम की तीव्रता, भक्ति की गहराई और आध्यात्मिक ऊंचाई देखने को मिलती है।

वहीं मीराबाई के विरह पदों में भगवान कृष्ण से विरह की वेदना व्यक्त हुई है। इन पदों में विरह की विभिन्न अवस्थाएं, जैसे कि आंसू, करुणा, व्याकुलता और आत्मसमर्पण व्यक्त हुई हैं। मीराबाई के विरह पदों में विरह की पीड़ा, भक्ति की तीव्रता और आध्यात्मिक उत्कर्ष देखने को मिलता है।

मीराबाई का हिंदी साहित्य में योगदान

मीराबाई हिंदी साहित्य की एक महान कवयित्री थीं। उन्होंने हिंदी साहित्य में कई योगदान दिए थे। आपको बता दें कि उन्होंने भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति, प्रेम और विरह को व्यक्त करने के लिए अनेक रचनाएं लिखीं थी। उनकी रचनाओं में सरल भाषा, गहरी भावनाएं और संगीतमयता है। मीराबाई की रचनाओं ने भक्ति काव्य को एक नया आयाम दिया।

मीराबाई की रचनाओं ने हिंदी भाषा और शैली को समृद्ध किया। उन्होंने सरल भाषा और गीतात्मक शैली का प्रयोग किया, जो उनकी रचनाओं को लोकप्रिय बनाता है। आपको बता दें कि मीराबाई की रचनाओं का हिंदी संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उनकी रचनाओं को आज भी लोकप्रिय रूप से गाया जाता है और सुना जाता है। मीराबाई का हिंदी साहित्य में अमूल्य योगदान है और उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।

मीराबाई के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं

मीराबाई का मेवाड़ में जीवन

मीराबाई बचपन से ही भगवान कृष्ण की भक्त थीं। 1516 ईस्वी में उनका विवाह मेवाड़ के राजा भोजराज के पुत्र भोजराज के साथ हुआ था। भोजराज की मृत्यु के बाद मीराबाई ने अपना जीवन कृष्ण भक्ति को समर्पित कर दिया था। मीराबाई के कृष्ण भक्ति को लेकर उनके ससुराल वालों से विवाद भी होने लगे थे।

मीराबाई का दरबार से बहिष्कार

मीराबाई की  कृष्ण भक्ति को लेकर उनके ससुराल वालों से विवाद बढ़ता गया। मीराबाई कृष्ण भक्ति के लिए दरबार में नाचती-गाती थीं, जो उनके ससुराल वालों को पसंद नहीं था।

उन्होंने मीराबाई को कृष्ण भक्ति से दूर रहने के लिए कहा, लेकिन मीराबाई ने उनकी बात नहीं मानी। 1523 ईस्वी में मीराबाई को चित्तौड़गढ़ से निर्वासित कर दिया गया।

मीराबाई का चित्तौड़गढ़ से द्वारका का प्रवास

चित्तौड़गढ़ से निर्वासित होने के बाद मीराबाई ने द्वारका का प्रवास किया। द्वारका में उन्होंने भगवान कृष्ण के मंदिर में अपना जीवन व्यतीत किया। मीराबाई की कृष्ण भक्ति और उनकी रचनाओं ने उन्हें प्रसिद्ध कर दिया। कई लोग मीराबाई के दर्शन और उनकी रचनाओं को सुनने के लिए द्वारका भी आते थे।

मीराबाई का निधन कब हुआ था?

मीराबाई के निधन की तिथि और कारण को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं हालांकि यह सबसे प्रचलित मान्यता है कि मीराबाई का निधन 1547 ईस्वी में द्वारका में हुआ था ऐसा कहा जाता है कि कृष्ण जन्माष्टमी के दिन वे मंदिर में नाचती-गाती रहीं और कृष्ण की मूर्ति में विलीन हो गईं।

जबकि कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि मीराबाई द्वारका से वृंदावन चली गई थीं और 1560 ईस्वी में वहीं उनका निधन हुआ था।

FAQs

मीराबाई का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

मीराबाई का जन्म 1498 ईस्वी में राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था।

मीराबाई के पिता का नाम क्या था?

मीराबाई के पिता का नाम रतन सिंह था, जो मेड़ता के राठौड़ राजपूत थे।

मीराबाई के पति का नाम क्या था?

मीराबाई का विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज से हुआ था।

मीराबाई को भक्ति का मार्ग कैसे मिला?

मीराबाई को भक्ति का मार्ग संत रविदास से मिला।

मीराबाई ने किन-किन देवताओं की भक्ति की?

मीराबाई ने भगवान कृष्ण की भक्ति की।

मीराबाई की रचनाओं की भाषा क्या थी?

मीराबाई की रचनाओं की भाषा ब्रजभाषा और राजस्थानी थी।

मीराबाई की रचनाओं की शैली क्या थी?

मीराबाई की रचनाओं की शैली भक्तिमय, गीतात्मक, और संगीतमय थी।

मीराबाई की मृत्यु कब और कैसे हुई?

मीराबाई की मृत्यु 1547 ईस्वी में द्वारका में हुई थी। कहा जाता है कि कृष्ण जन्माष्टमी के दिन वे मंदिर में नाचती-गाती रहीं और कृष्ण की मूर्ति में विलीन हो गईं।

मीराबाई के जीवन और रचनाओं का हिंदी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा?

मीराबाई ने हिंदी साहित्य को भक्ति काव्य की एक नई दिशा दी। उनकी रचनाओं ने हिंदी भाषा और शैली को भी समृद्ध किया।

मीराबाई से संबंधित कुछ प्रसिद्ध रचनाएं कौन सी हैं?

मीराबाई की कुछ प्रसिद्ध रचनाओं में "पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो", "नैन नु भरिआ मोती", "मेरे तो गिरधर गोपाल" और "जो तुम तोडो पिया" शामिल हैं।

मीराबाई को "मीराबाई" नाम कैसे मिला?

मीराबाई को "मीराबाई" नाम भगवान कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति के कारण मिला। "मीरा" का अर्थ है "भगवान कृष्ण की प्रेमिका"।

मीराबाई के जीवन में किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

मीराबाई को अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे कि पति की मृत्यु, सास-ससुर का विरोध और समाज की आलोचना।

मीराबाई के जीवन और रचनाओं पर किन-किन संतों का प्रभाव था?

मीराबाई के जीवन और रचनाओं पर संत रविदास, संत तुलसीदास और संत सूरदास का महत्वपूर्ण प्रभाव था।

मीराबाई की रचनाओं को आज भी क्यों प्रसिद्ध और लोकप्रिय माना जाता है?

मीराबाई की रचनाओं को आज भी प्रसिद्ध और लोकप्रिय माना जाता है क्योंकि उनमें सरल भाषा, गहरी भावनाएं और संगीतमयता है।

मीराबाई के जीवन और रचनाओं पर आधारित कुछ फिल्में और टीवी सीरियल कौन से हैं?

मीराबाई के जीवन और रचनाओं पर आधारित कुछ फिल्में और टीवी सीरियल "मीराबाई", "मीराबाई के प्रेम गीत" और "मीराबाई की कहानी" शामिल हैं।

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