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डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय (Dr. Hazari Prasad Dwivedi Ka Jivan Parichay)

Dr. Hazari Prasad Dwivedi

हिन्दी साहित्य के इतिहास में डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी (Dr. Hazari Prasad Dwivedi) का नाम एक युगपुरुष के रूप में उभरता है। वे हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में एक महत्वपूर्ण कड़ी थे। उन्होंने हिंदी भाषा को खड़ी बोली पर आधारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने हिंदी साहित्य में आधुनिकता की शुरुआत की। उन्होंने निबंध, आलोचना, उपन्यास, कविता, नाटक और संपादन सहित सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किया।

डॉ. द्विवेदी जी की रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य के पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जाती हैं। उनके विचार और सिद्धांत आज भी हिंदी साहित्यकारों को प्रेरित करते हैं।

इस लेख में हम डॉ. द्विवेदी जी के जीवन और साहित्य पर एक संक्षिप्त दृष्टि डालेंगे। हम उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे, जिसमें उनका जन्म, शिक्षा, साहित्यिक जीवन, सामाजिक और राजनीतिक जीवन, सम्मान और पुरस्कार और मृत्यु शामिल हैं। हम उनके प्रमुख कार्यों पर भी चर्चा करेंगे।

हम आशा करते हैं कि यह लेख आपको डॉ. द्विवेदी जी के बारे में अधिक जानने और उनके साहित्य को समझने में मदद करेगा।

डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी का संक्षिप्त परिचय

नाम डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी
मूल नाम बैजनाथ द्विवेदी
जन्म 19 अगस्त, 1907
जन्म स्थान बलिया जिला, उत्तर प्रदेश
पिता का नाम पंडित अनमोल द्विवेदी
माता ज्योतिष्मती
साहित्य काल आधुनिक काल
उपन्यास बाणभट्ट की आत्मकथा, चंद्रकांत, परीक्षा गुरु इत्यादि
निबंध आलोक पर्व, कल्पलता, कुटज, विचार और वितर्क इत्यादि
आलोचना हिन्दी साहित्य का इतिहास, भक्तिकालीन साहित्य, भारतीय संस्कृति और साहित्य, कलिदास की लालित्य इत्यादि
नाटक अनामिका, अंतिम द्वार इत्यादि
संपादन सरस्वती, पृथ्वीराज रासो, संदेश रासक, नाथ सिद्धो की बानियाँ इत्यादि
पुरस्कार पद्म भूषण (1957), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1964), महामहोपाध्याय की उपाधि (1968), लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा "डी. लिट." की उपाधि (1973)
निधन 19 मई, 1979 (दिल्ली)


जन्म और प्रारंभिक जीवन

डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी (Dr. Hazari Prasad Dwivedi) का जन्म 19 अगस्त, 1907 को बलिया, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम पं. अनमोल द्विवेदी थे, जो संस्कृत के विद्वान थे। डॉ. द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में हुई। उन्होंने 1923 में बसरिकापुर के मिडिल स्कूल से प्रथम श्रेणी में मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने 1926 में बलिया के जिला स्कूल से प्रथम श्रेणी में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की।

शिक्षा

1927 में, डॉ. द्विवेदी जी (Dr. Hazari Prasad Dwivedi) बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। उन्होंने 1930 में हिंदी में बी.ए. और 1933 में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। 1934 में, उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया। 1942 में, उन्हें प्रोफेसर के पद पर पदोन्नत किया गया।

साहित्यिक जीवन

डॉ. द्विवेदी जी (Dr. Hazari Prasad Dwivedi) ने हिंदी साहित्य में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए। उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य के विकास के लिए अथक प्रयास किए। उन्होंने हिंदी भाषा को खड़ी बोली पर आधारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने हिंदी साहित्य में आधुनिकता की शुरुआत की।

डॉ. द्विवेदी जी एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। उन्होंने निबंध, आलोचना, उपन्यास, कविता, नाटक और संपादन सहित सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किया।

सामाजिक और राजनीतिक जीवन

डॉ. द्विवेदी जी स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदार थे। उन्होंने समाज सुधार के क्षेत्र में भी कार्य किया। उन्होंने "सरस्वती" पत्रिका का संपादन भी किया।

डॉ. द्विवेदी जी हिंदी साहित्य के एक महान साहित्यकार थे। उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे हिंदी साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं।

मुख्य रचनाएँ

Dr. Hazari Prasad Dwivedi की मुख्य रचनाएँ निम्नलिखित है -

निबंध

डॉ. द्विवेदी जी ने निबंध लेखन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके निबंधों में साहित्य, समाज, कला, संस्कृति, धर्म, राजनीति आदि विषयों पर विचारोत्तेजक और ज्ञानवर्धक लेखन मिलता है। उनके प्रमुख निबंध संग्रहों में "आलोक पर्व", "कल्पलता", "कुटज" और "विचार और वितर्क" शामिल हैं।

आलोचना

डॉ. द्विवेदी जी हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध आलोचक थे। उन्होंने हिंदी साहित्य के विभिन्न कालखंडों और विधाओ का गहन अध्ययन किया। उनके आलोचनात्मक लेखन में गंभीरता और सूक्ष्मता का अद्भुत समन्वय मिलता है। उनके प्रमुख आलोचनात्मक ग्रंथों में "हिन्दी साहित्य का इतिहास", "भक्तिकालीन साहित्य", "भारतीय संस्कृति और साहित्य" और "कलिदास की लालित्य-योजना" शामिल हैं।

उपन्यास

डॉ. द्विवेदी जी ने तीन उपन्यास लिखे हैं। उनके उपन्यासों में ऐतिहासिक, सामाजिक और पारिवारिक जीवन के विभिन्न पक्षों का चित्रण मिलता है। उनके प्रमुख उपन्यासों में "बाणभट्ट की आत्मकथा", "चंद्रकांत" और "परीक्षा गुरु" शामिल हैं।

कविता

डॉ. द्विवेदी जी ने कविता में भी कुछ महत्वपूर्ण रचनाएँ की हैं। उनकी कविताओं में प्रकृति, सौंदर्य, प्रेम और जीवन के विभिन्न पक्षों का चित्रण मिलता है। उनके प्रमुख काव्य संग्रहों में "कविता के प्रति" और "हिन्दी कविता में सौंदर्य" शामिल हैं।

नाटक

डॉ. द्विवेदी जी ने दो नाटक लिखे हैं। उनके नाटकों में सामाजिक समस्याओं का यथार्थवादी चित्रण मिलता है। उनके प्रमुख नाटकों में "अनामिका" और "अंतिम द्वार" शामिल हैं।

संपादन

डॉ. द्विवेदी जी ने "सरस्वती" पत्रिका का संपादन भी किया। उन्होंने इस पत्रिका को हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण प्रकाशन के रूप में स्थापित किया।

डॉ. द्विवेदी जी की सभी रचनाएँ हिंदी साहित्य के लिए अमूल्य धरोहर हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध और परिपक्व बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

पुरस्कार और सम्मान

डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी (Dr. Hazari Prasad Dwivedi) को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उनमें से कुछ प्रमुख हैं -

  • पद्म भूषण (1957)
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (1964)
  • भारत सरकार द्वारा "महामहोपाध्याय" की उपाधि (1968)
  • लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा "डी. लिट." की उपाधि (1973)

डॉ. द्विवेदी जी को "आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक" के रूप में जाना जाता है। उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे हिंदी साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं।

हिंदी साहित्य में स्थान

डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी (Dr. Hazari Prasad Dwivedi) हिंदी साहित्य के एक महान साहित्यकार थे। उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे हिंदी साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं।

डॉ. द्विवेदी जी ने हिंदी भाषा को खड़ी बोली पर आधारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने हिंदी साहित्य में आधुनिकता की शुरुआत की। उन्होंने निबंध, आलोचना, उपन्यास, कविता, नाटक और संपादन सहित सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किया।

डॉ. द्विवेदी जी की रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य के पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जाती हैं। उनके विचार और सिद्धांत आज भी हिंदी साहित्यकारों को प्रेरित करते हैं।

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का निधन

डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी (Dr. Hazari Prasad Dwivedi) का निधन 19 मई, 1979 को दिल्ली में हुआ था। वे 71 वर्ष के थे। उनकी मृत्यु के बाद पूरे हिंदी जगत में शोक की लहर दौड़ गई।

निष्कर्ष

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