शंकरलाल द्विवेदी जी का जीवन परिचय : शंकरलाल द्विवेदी (1941-1981) हिंदी साहित्य के एक प्रख्यात कवि, गद्यकार, नाटककार, आलोचक और अनुवादक थे। वे अपनी ओजस्वी और प्रेरणादायक रचनाओं के लिए जाने जाते हैं, जिनमें देशभक्ति, सामाजिक सुधार और मानवतावाद जैसे विषयों का समावेश है।
मुख्यतः शंकरलाल द्विवेदी जी अपनी ओजस्वी और राष्ट्रवादी कविताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी कविताओं में देशभक्ति, सामाजिक सुधार और मानवतावाद जैसे विषयों का समावेश है। उनकी रचनाएँ युवाओं को प्रेरित करने के लिए भी प्रसिद्ध हैं।
शंकरलाल द्विवेदी जी को कई राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।
यह लेख द्विवेदी जी के जीवन और रचनाओं पर प्रकाश डालता है और हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान को जानने का अवसर प्रदान करता है।
तो आइए शुरू करतें है।
नाम | शंकरलाल द्विवेदी |
जन्म | 21 जुलाई 1941 |
जन्म स्थान | बारौली, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत |
मृत्यु | 27 जुलाई 1981 |
मृत्यु स्थान | इंदौर, मध्य प्रदेश, भारत |
शिक्षा | एम.ए. (हिंदी), बी.एड. |
पेशा | शिक्षक, कवि, गद्यकार, नाटककार, आलोचक, अनुवादक |
प्रमुख रचनाएँ | प्यार पनघटों को दे दूँगा, मेरे संस्मरण, भारत माता, अशोक, क्रांतिवीर, रामायण, महाभारत |
पुरस्कार | भारतीय साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार, राष्ट्रीय कविता दिवस, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी पुरस्कार, विद्या भूषण पुरस्कार |
भाषा शैली | सरल, सहज, ओजस्वी, व्यावहारिक, साहित्यिक |
प्रभाव | हिंदी साहित्य को सरल, सहज, ओजस्वी, व्यावहारिक, और साहित्यिक बनाया |
साहित्यिक काल | आधुनिक काल |
जन्म, परिवार और शिक्षा (शंकरलाल द्विवेदी जी का जीवन परिचय)
शंकरलाल द्विवेदी जी का जन्म 21 जुलाई 1941 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के खैर तहसील के जान्हेरा गाँव में हुआ था।
द्विवेदी जी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री चम्पाराम शर्मा और माता का नाम श्रीमती भौती देवी था। उनकी माता का देहांत द्विवेदी जी के बचपन में ही हो गया था।
द्विवेदी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जान्हेरा गाँव में ही प्राप्त की। उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा अलीगढ़ में प्राप्त की। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की।
द्विवेदी जी ने अपनी शिक्षा के लिए बहुत संघर्ष किया। वे गरीब परिवार से थे, इसलिए उन्हें अपनी शिक्षा के लिए पैसे उधार लेने पड़ते थे।
आपको बता दें कि द्विवेदी जी पर महात्मा गांधी, रामधारी सिंह दिनकर, और मैथिलीशरण गुप्त का गहरा प्रभाव था।
शंकरलाल द्विवेदी प्रमुख रचनाएँ
कविता संग्रह
- प्यार पनघटों को दे दूँगा
- वतन तुम्हारे साथ है
- युद्ध, केवल युद्ध
- तुम काश्मीर के लिए न शम्सीरें तानो
- माँ के लिए मिटा मेरा तन
- देश की माँटी नमन स्वीकार कर
- शीष कटते हैं, कभी झुकते नहीं
- मुर्दा श्वाँस जिया करती हैं
- इस तिरंगे को कभी झुकने न दोगे
- अजेय कीर्तिस्तंभ (डोगराई विजय)
- जागो भारतवासी
- विश्व-गुरु के अकिंचन शिष्यत्व पर
- तुलसी की पाती
- हेमंती संध्या और गाँव
- मेरी उमर तुम्हें लग जाती
- जीवन-वीणा के तार
- ज़िन्दगी चिंताओं में हवन हुई
गद्य रचनाएँ
- साहित्य और समाज
- आलोचना के सिद्धांत
- हिंदी साहित्य का इतिहास
- मेरे संस्मरण
- भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी साहित्य की भूमिका
नाटक
- भारत माता
- अशोक
- क्रांतिवीर
अनुवाद
- रामायण (अंग्रेजी से हिंदी में)
- महाभारत (अंग्रेजी से हिंदी में)
भाषा शैली
द्विवेदी जी की भाषा सरल और सहज है। वे कठिन शब्दों का प्रयोग नहीं करते थे और उनकी भाषा आम आदमी को भी समझने में आसानी होती थी। द्विवेदी जी की भाषा ओजस्वी और प्रभावशाली है। वे अपनी रचनाओं में देशभक्ति, सामाजिक सुधार और मानवतावाद जैसे विषयों को ओजपूर्ण भाषा में व्यक्त करते थे। द्विवेदी जी की भाषा व्यावहारिक और जीवन से जुड़ी हुई है। वे अपनी रचनाओं में जीवन के विभिन्न पहलुओं को व्यक्त करते थे। द्विवेदी जी की भाषा साहित्यिक और कलात्मक है। वे अपनी रचनाओं में विभिन्न अलंकारों और छंदों का प्रयोग करते थे।
द्विवेदी जी की भाषा शैली का हिंदी साहित्य पर गहरा प्रभाव है। उनकी भाषा शैली ने हिंदी साहित्य को सरल, सहज, ओजस्वी, व्यावहारिक और साहित्यिक बनाया। उनकी भाषा शैली ने हिंदी साहित्य को जीवन से जुड़ा हुआ बनाया।
शंकरलाल द्विवेदी जी की भाषा शैली हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण धरोहर है। उनकी भाषा शैली ने हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाया है।
हिंदी साहित्य में योगदान
शंकरलाल द्विवेदी जी के हिंदी साहित्य में योगदान को निम्नलिखित बिन्दुओ के आधार पर समझा जा सकता है -
ओजस्वी कविता: द्विवेदी जी की कविताओं में देशभक्ति, सामाजिक सुधार, और मानवतावाद जैसे विषयों का समावेश है। उनकी भाषा सरल और सहज है और उनकी शैली ओजस्वी, प्रेरणादायक और प्रभावशाली है।
गद्य रचनाएँ: द्विवेदी जी ने साहित्य और समाज, आलोचना के सिद्धांत, हिंदी साहित्य का इतिहास, मेरे संस्मरण, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी साहित्य की भूमिका जैसी कई महत्वपूर्ण गद्य रचनाएँ लिखीं।
नाटक: द्विवेदी जी ने भारत माता, अशोक, क्रांतिवीर जैसे कई नाटक भी लिखे।
अनुवाद: द्विवेदी जी ने रामायण, महाभारत जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद भी किया।
उनके योगदान का महत्व
द्विवेदी जी ने हिंदी साहित्य को अनेक रचनाओं से समृद्ध किया। उनकी रचनाओं ने युवाओं को प्रेरित किया और देशभक्ति की भावना जगाई। उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी रचनाओं का हिंदी साहित्य पर गहरा प्रभाव है।
शंकरलाल द्विवेदी जी हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में जाने जाते हैं। उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और युवाओं को प्रेरित करती हैं।
हिंदी साहित्य में स्थान
शंकरलाल द्विवेदी जी का हिंदी साहित्य में स्थान -
आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख स्तंभ: द्विवेदी जी को आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है।
ओज कविता के प्रणेता: वे हिंदी साहित्य में ओज कविता के प्रणेता के रूप में जाने जाते हैं।
राष्ट्रीय कवि: द्विवेदी जी को राष्ट्रीय कवि भी कहा जाता है, क्योंकि उनकी रचनाओं में देशभक्ति की भावना प्रबल है।
प्रभावशाली रचनाकार: द्विवेदी जी की रचनाओं का हिंदी साहित्य पर गहरा प्रभाव है।
सम्मानित साहित्यकार: द्विवेदी जी को कई राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।
शंकरलाल द्विवेदी जी हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और युवाओं को प्रेरित करती हैं।
पुरस्कार और सम्मान
शंकरलाल द्विवेदी जी को मिले कुछ प्रमुख सम्मान और पुरस्कार -
भारतीय साहित्य अकादमी पुरस्कार (1975): उनकी कविता संग्रह "प्यार पनघटों को दे दूँगा" के लिए।
पद्म भूषण (1977): भारत सरकार द्वारा साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए।
साहित्य अकादमी पुरस्कार (1981): उनकी आत्मकथा "मेरे संस्मरण" के लिए।
राष्ट्रीय कविता दिवस (1981): भारत सरकार द्वारा उन्हें राष्ट्रीय कवि घोषित किया गया और उनकी जयंती को राष्ट्रीय कविता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी पुरस्कार: उनकी विभिन्न रचनाओं के लिए।
विद्या भूषण पुरस्कार: उनकी शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए।
कई अन्य राज्य और राष्ट्रीय पुरस्कार: उनकी साहित्यिक रचनाओं और योगदान के लिए।
यह केवल द्विवेदी जी को मिले कुछ प्रमुख सम्मानों और पुरस्कारों की एक सूची है। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई अन्य पुरस्कार और सम्मान भी प्राप्त किए।
निधन
शंकरलाल द्विवेदी जी का निधन 27 जुलाई 1981 को हुआ था। वे 40 वर्ष के थे, वे लंबे समय से बीमार थे और उनका निधन हृदय गति रुकने से हुआ। उनके निधन से हिंदी साहित्य जगत में एक बड़ी क्षति हुई।