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सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी का जीवन परिचय

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जीवन परिचय

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' - हिंदी साहित्य का एक ऐसा नाम, जो क्रांति, नवीनता और अमर रचनाओं का प्रतीक है। 'महाप्राण' के नाम से विख्यात 'निराला' जी ने अपनी रचनाओं में वेदना, प्रेम, प्रकृति और जीवन के गहरे रहस्यों को उजागर किया।

यह जीवन परिचय आपको 'निराला' जी के संघर्षमय जीवन, उनकी क्रांतिकारी रचनाओं और हिंदी साहित्य में उनके अमिट योगदान से परिचित कराएगा।

यह जीवन परिचय आपको 'निराला' जी के जीवन और कार्यों का गहन अध्ययन करने और उनके अद्वितीय व्यक्तित्व को समझने में मदद करेगा।

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का संक्षिप्त परिचय

नाम सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
उपनाम निराला
जन्म तिथि 21 फरवरी 1896
जन्म स्थान महिषादल, बंगाल (वर्तमान में पश्चिम बंगाल)
मृत्यु तिथि 15 अक्टूबर 1961
मृत्यु स्थान इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज), उत्तर प्रदेश
शिक्षा हाई स्कूल तक
पत्नी का नाम मंथरदेवी
भाषा हिंदी
विधाएँ कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, नाटक, रेखाचित्र
प्रमुख रचनाएँ परिमल, गीतिका, अनामिका, तुर्यशंख, कुकुरमुत्ता, चतुरी चमार, बिल्वमंगल, सुखदा, लिली, अप्सरा, अलका, प्रलय का प्रतीक, चयनित निबंध, प्रबंध-पंचिका
सम्मान और पुरस्कार साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मभूषण, उत्तर प्रदेश सरकार का साहित्य पुरस्कार, बिहार सरकार का साहित्य पुरस्कार, मध्य प्रदेश सरकार का साहित्य पुरस्कार
साहित्यिक काल छायावादी युग


सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी का जीवन परिचय

जन्म

छायावादी युग के महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी का जन्म 21 फरवरी 1896 को बंगाल के महिषादल में हुआ था, उनके पिता पंडित रामसहाय त्रिपाठी एक विद्वान व्यक्ति थे जो संस्कृत और बांग्ला भाषा में पारंगत थे और उनकी माता मनोहरा देवी एक धर्मपरायण और गृहिणी थीं। निराला जी का बचपन गरीबी और संघर्षों से भरा हुआ था।

विवाह और पारिवारिक जीवन

1916 में, निराला जी का विवाह मनोहरा देवी से हुआ था, उनकी पत्नी एक शिक्षित और समझदार महिला थीं जिन्होंने उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। निराला जी के चार बच्चे थे - सरोज, रामकृष्ण, सूर्यकांत और कुसुम।

आपको बता दें कि 1936 में, उनकी पत्नी का निधन हो गया, जिसके बाद निराला जी को जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

शिक्षा

निराला जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की, उन्होंने 1912 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की। 1917 में, उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद 1920 में एम.ए. की परीक्षा भी उत्तीर्ण की, लेकिन अपनी आर्थिक स्थिति के कारण वे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके।

निराला जी के जीवन के प्रारंभिक पहलुओं से हमें उनके व्यक्तित्व और उनके साहित्यिक योगदान को समझने में मदद मिलती है। उनका बचपन गरीबी और संघर्षों से भरा था, जिसने उनके लेखन में एक गहरी भावना और करुणा पैदा की। उनकी पत्नी का निधन उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसके बाद उन्होंने अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया।

निराला जी एक शिक्षित और विद्वान व्यक्ति थे, जिसका प्रभाव उनके लेखन में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उनके जीवन के प्रारंभिक पहलुओं ने उन्हें एक महान कवि और लेखक बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की प्रमुख रचनाएं

कविता

  • परिमल (1920)
  • अर्चना (1923)
  • गीतिका (1936)
  • अनामिका (1943)
  • प्रबंध-पंचिका (1946)
  • चतुरी चमार (1950)
  • सरोज-स्मृति
  • राम की शक्ति-पूजा
  • कुकुरमुत्ता
  • तोड़ती पत्थर
  • सच है
  • बापू के प्रति
  • जल्द-जल्द पैर बढ़ाओ
  • विनय
  • रानी और कानी

कहानी

  • चतुरी चमार (1950)
  • सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (1950)
  • बिल्लेसुर बकरिया
  • देवसेना
  • अभिमन्यु
  • उर्वशी
  • शकुंतला
  • प्रभास
  • कुरुक्षेत्र
  • महाप्रस्थान
  • विश्व-युद्ध

उपन्यास

  • अप्सरा (1931)
  • अलका (1933)
  • प्रभावती (1936)
  • निरुपमा (1936)
  • कुल्ली भाट (1938)

निबंध

  • मैथिलीशरण गुप्त (1942)
  • आत्मा की आँखें (1944)

अनुवाद

  • रवींद्रनाथ टैगोर की गीतांजलि (1923)
  • रवींद्रनाथ टैगोर की गीतांजलि (1923)
  • रवींद्रनाथ टैगोर की गीतांजलि (1923)

निराला जी की रचनाएं हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान हैं। उन्होंने विभिन्न विधाओं में लिखा और उनकी रचनाओं में उनकी बहुमुखी प्रतिभा और रचनात्मकता का प्रदर्शन होता है। उनकी कविताएं भावनात्मक रूप से गहरी और विचारोत्तेजक हैं और उनकी कहानियां और उपन्यास सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उठाते हैं। यह लेख आपको निराला जी की प्रमुख रचनाओं के बारे में एक बुनियादी समझ प्रदान करता है।

भाषा और शैली

निराला जी हिंदी साहित्य के छायावादी युग के प्रमुख कवियों में से एक थे। उनकी भाषा शैली अपनी विशिष्टता और नवीनता के लिए प्रसिद्ध है।

उनकी भाषा शैली की कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं -

तत्सम शब्दों का प्रयोग: निराला जी ने अपनी रचनाओं में तत्सम शब्दों का भरपूर प्रयोग किया। उन्होंने संस्कृत से अनेक तत्सम शब्दों को हिंदी में लाकर अपनी भाषा को समृद्ध बनाया।

देशज शब्दों का प्रयोग: निराला जी ने अपनी रचनाओं में देशज शब्दों का भी प्रयोग किया। उन्होंने अपनी भाषा को जनता के करीब लाने के लिए देशज शब्दों का प्रयोग किया।

विभिन्न भाषाओं के शब्दों का प्रयोग: निराला जी ने अपनी रचनाओं में अंग्रेजी, उर्दू, फारसी और बंगाली भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग किया। उन्होंने अपनी भाषा को और अधिक समृद्ध बनाने के लिए विभिन्न भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया।

रचनात्मक शब्द प्रयोग: निराला जी ने अपनी रचनाओं में अनेक रचनात्मक शब्दों का प्रयोग किया। उन्होंने अपनी भाषा को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए अनेक नए शब्दों का निर्माण किया।

अलंकारों का प्रयोग: निराला जी ने अपनी रचनाओं में अनेक अलंकारों का प्रयोग किया। उन्होंने अपनी भाषा को और अधिक सुंदर और प्रभावशाली बनाने के लिए अनेक अलंकारों का प्रयोग किया।

छंदों का प्रयोग: निराला जी ने अपनी रचनाओं में अनेक छंदों का प्रयोग किया। उन्होंने अपनी भाषा को और अधिक लयबद्ध और संगीतमय बनाने के लिए अनेक छंदों का प्रयोग किया।

निराला जी की भाषा शैली हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान है। उनकी भाषा शैली ने हिंदी भाषा को समृद्ध और प्रभावशाली बनाया है। उनकी भाषा शैली आज भी प्रासंगिक है और लेखकों और कवियों को प्रेरित करती है।

हिंदी साहित्य में योगदान और स्थान

निराला जी हिंदी साहित्य के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उनका हिंदी साहित्य में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

निराला जी का हिंदी साहित्य में योगदान अनेक रूपों में है -

छायावादी कविता के प्रवर्तक: निराला जी छायावादी कविता के प्रवर्तकों में से एक थे। उन्होंने अपनी कविताओं में प्रकृति, प्रेम और रहस्यवाद जैसे विषयों को उठाया।

नवीन भाषा शैली: निराला जी ने अपनी रचनाओं में एक नवीन भाषा शैली का प्रयोग किया। उन्होंने तत्सम, देशज और विदेशी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करके अपनी भाषा को समृद्ध बनाया।

विभिन्न विधाओं में लेखन: निराला जी ने कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध और अनुवाद जैसे विभिन्न विधाओं में लिखा।

सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर लेखन: निराला जी ने अपनी रचनाओं में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को भी उठाया।

हिंदी भाषा को समृद्ध बनाना: निराला जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी भाषा को समृद्ध बनाया।

आपको बता दें कि निराला जी को हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उन्हें हिंदी साहित्य के महानतम कवियों में से एक माना जाता है। उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं और पाठकों को प्रेरित और शिक्षित करती हैं। हालांकि यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि निराला जी एक विवादास्पद व्यक्ति भी थे।

उनकी कुछ रचनाओं में जातिवाद और सांप्रदायिकता के आरोप भी लगाए गए हैं। हालांकि, इन आरोपों के बावजूद, निराला जी का हिंदी साहित्य में योगदान अतुलनीय है। उनकी रचनाएं हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।

पुरस्कार और सम्मान

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' को मिले पुरस्कार, उपाधि और सम्मानों का विवरण -

वर्ष पुरस्कार/उपाधि/सम्मान प्रदान करने वाली संस्था
1926 विद्यावाचस्पति काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
1953 साहित्य अकादमी पुरस्कार साहित्य अकादमी
1954 सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार सोवियत संघ
1961 ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ
1962 पद्मभूषण भारत सरकार
1962 उत्तर प्रदेश सरकार का साहित्य पुरस्कार उत्तर प्रदेश सरकार
1963 बिहार सरकार का साहित्य पुरस्कार बिहार सरकार
1964 मध्य प्रदेश सरकार का साहित्य पुरस्कार मध्य प्रदेश सरकार

अन्य पुरस्कार और सम्मान

1923: 'परिमल' (कविता संग्रह) के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार

1936: 'गीतिका' (कविता संग्रह) के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार

1943: 'अनामिका' (कविता संग्रह) के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार

1950: 'चतुरी चमार' (कहानी संग्रह) के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार

1961: 'कुकुरमुत्ता' (कविता) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार

1963: 'प्रबंध-पंचिका' (कविता) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार

1964: 'निराला जी की रचनावली' (सम्पूर्ण रचनाओं का संग्रह) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार

निधन

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का निधन 15 अक्टूबर 1961 को इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज), उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनकी मृत्यु का कारण हृदय गति रुकना था। उनके निधन के समय वे 62 वर्ष के थे। निराला जी का निधन हिंदी साहित्य के लिए एक अपूरणीय क्षति थी।

उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाया और वे आज भी हिंदी साहित्य के सबसे लोकप्रिय और सम्मानित कवियों और लेखकों में से एक हैं।

निष्कर्ष

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' हिंदी साहित्य के इतिहास में एक अद्वितीय और क्रांतिकारी व्यक्तित्व थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में नवीनता और प्रयोगों के माध्यम से हिंदी साहित्य को नई दिशा प्रदान की। उनकी रचनाओं में प्रकृति, प्रेम, जीवन, मृत्यु और सामाजिक मुद्दों जैसे विषयों का चित्रण मिलता है। 'निराला' जी की भाषा शैली अपनी गहनता और नवीनता के लिए जानी जाती है।

'निराला' जी का जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी। वे एक सच्चे कलाकार और क्रांतिकारी थे। उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।

'निराला' जी के जीवन परिचय का यह निष्कर्ष उनके जीवन और कार्यों का एक संक्षिप्त और प्रभावशाली सार प्रस्तुत करता है।

FAQs

1. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्म कब और कहां हुआ था? 

उत्तर: सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्म 21 फरवरी 1896 को बंगाल के महिषादल में हुआ था।

2. 'निराला' उपनाम उन्हें कैसे मिला? 

उत्तर: यह उपनाम उन्हें उनकी क्रांतिकारी भावना और सामाजिक मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखने के कारण दिया गया था।

3. 'निराला' जी का हिंदी साहित्य में क्या योगदान है? 

उत्तर: सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक थे। उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, नाटक और रेखाचित्र सहित विभिन्न विधाओं में लिखा। उनकी रचनाओं में प्रकृति, प्रेम, जीवन, मृत्यु और सामाजिक मुद्दों जैसे विषयों का चित्रण मिलता है।

4. 'निराला' जी की कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ कौन सी हैं? 

उत्तर: कविता: परिमल, गीतिका, अनामिका, तुर्यशंख, कुकुरमुत्ता।

कहानी: चतुरी चमार, बिल्वमंगल, सुखदा, लिली

उपन्यास: अप्सरा, अलका, प्रलय का प्रतीक

निबंध: चयनित निबंध, प्रबंध-पंचिका

5. 'निराला' जी को मिले मुख्य पुरस्कार और सम्मान कौन से हैं? 

उत्तर: 1953: साहित्य अकादमी पुरस्कार - "परिमल" (कविता संग्रह)

1961: ज्ञानपीठ पुरस्कार - "कुकुरमुत्ता" (कविता)

1962: पद्मभूषण

1962: उत्तर प्रदेश सरकार का साहित्य पुरस्कार

1963: बिहार सरकार का साहित्य पुरस्कार

1964: मध्य प्रदेश सरकार का साहित्य पुरस्कार

6. 'निराला' जी की मृत्यु कब और कहां हुई थी? 

उत्तर: उनका निधन 15 अक्टूबर 1961 को इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज), उत्तर प्रदेश में हुआ था।

7. 'निराला' जी की भाषा शैली का क्या नाम था? 

उत्तर: उनकी भाषा शैली को 'निरालाई भाषा शैली' कहा जाता है। यह भाषा शैली अपनी नवीनता, प्रयोगों और गहनता के लिए जानी जाती है।

8. 'निराला' जी की रचनाओं में किस विचारधारा का प्रभाव है? 

उत्तर: उनकी रचनाओं में प्रगतिवादी विचारधारा का प्रभाव है।

9. 'निराला' जी को 'कुकुरमुत्ता कवि' क्यों कहा जाता है? 

उत्तर: उन्हें उनकी प्रसिद्ध कविता "कुकुरमुत्ता" के कारण 'कुकुरमुत्ता कवि' कहा जाता है।

10. 'निराला' जी ने किस पत्रिका का संपादन किया था? 

उत्तर: उन्होंने 'मतवाला' पत्रिका का संपादन किया था।

11. 'निराला' जी का जन्म किस नक्षत्र में हुआ था? 

उत्तर: उनका जन्म 'उत्तराषाढ़ा' नक्षत्र में हुआ था।

12. 'निराला' जी की पत्नी का नाम क्या था? 

उत्तर: उनकी पत्नी का नाम 'मंथरदेवी' था।

13. 'निराला' जी का जन्मस्थान किस जिले में स्थित है? 

उत्तर: उनका जन्मस्थान 'पूर्वी मिदनापुर' जिले में स्थित है।

14. 'निराला' जी का जन्म किस राज्य में हुआ था? 

उत्तर: उनका जन्म 'पश्चिम बंगाल' राज्य में हुआ था।

16. 'निराला' जी के पिता का नाम क्या था? 

उत्तर: उनके पिता का नाम 'पंडित रामनारायण त्रिपाठी' था।

17. 'निराला' जी की माता का नाम क्या था? 

उत्तर: उनकी माता का नाम 'मानिकदेवी' था।

18. 'निराला' जी को किस साहित्यिक आंदोलन से जोड़ा जाता है? 

उत्तर: उन्हें 'छायावादी' साहित्यिक आंदोलन से जोड़ा जाता है।

19. 'निराला' जी की रचनाओं में किस दर्शन का प्रभाव है? 

उत्तर: उनकी रचनाओं में 'वेदांत' दर्शन का प्रभाव है।

20. 'निराला' जी को 'हिंदी साहित्य के प्रथम प्रयोगवादी कवि' क्यों कहा जाता है? 

उत्तर: उन्हें 'हिंदी साहित्य के प्रथम प्रयोगवादी कवि' इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपनी रचनाओं में मुक्त छंद, नई भाषा और नवीन बिंबों का प्रयोग किया।

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