वासुदेव शरण अग्रवाल जी का जीवन परिचय : वासुदेव शरण अग्रवाल जी का नाम हिंदी साहित्य में प्रतिष्ठित है, क्योंकि उन्होंने अपनी कृतियों में भारतीय संस्कृति, पुरातत्व और इतिहास के अनेक पक्षों को गहराई से अध्ययन और विश्लेषण किया।
उन्होंने निबंध, आलोचना, शोध और सम्पादन के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य किया। उनकी भाषा शैली गंभीर, संवेदनशील और विषयानुरूप थी। उन्होंने संस्कृत, पालि, अंग्रेजी आदि भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान रखते थे।
आज हम इस लेख में वासुदेव शरण अग्रवाल जी का जीवन परिचय पढ़ेंगे जो हमे हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान को जानने का सबसे बेहतर विकल्प देता है।
तो आइए इस लेख को पूरा पढ़ते है।
नाम | वासुदेव शरण अग्रवाल |
जन्म | 7 अगस्त, 1904, खेड़ा, मेरठ, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 27 जुलाई, 1967, वाराणसी |
उपाधि | पीएच.डी. और डी.लिट. (लखनऊ विश्वविद्यालय) |
पेशा | विद्वान, लेखक, संपादक, शिक्षक, पुरातत्वविद |
प्रमुख कार्य | पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पद्मावत की संजीविनी व्याख्या, हर्षचरित का संस्कृति अध्ययन, महापुरुष श्रीकृष्ण, महर्षि वाल्मीकि, और मनु आदि |
पुरस्कार | साहित्य अकादमी पुरस्कार (1956) |
साहित्यिक काल | आधुनिक काल |
इस लेख में क्या है?
जन्म और परिवारिक पृष्ठभूमि (वासुदेव शरण अग्रवाल जी का जीवन परिचय)
वासुदेव शरण अग्रवाल जी का जन्म 7 अगस्त 1904 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के खेड़ा नामक गाँव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता विष्णु अग्रवाल एक किसान थे और उनकी माता श्रीमती सीता देवी गृहिणी थीं। वासुदेव शरण अग्रवाल जी चार बहनों और एक भाई में सबसे बड़े थे।
आपको बता दें कि उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि ने उनके जीवन और कार्यों को गहराई से प्रभावित किया। उनके माता-पिता ने उन्हें शिक्षा और संस्कृति का महत्व सिखाया। वे सभी धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से प्रवृत्त थे। आपको बता दें कि वासुदेव शरण अग्रवाल जी की पत्नी श्रीमती सरस्वती देवी ने उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे एक शिक्षित महिला थीं और उन्होंने अपने पति के कार्यों में उनका सहयोग किया।
उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां थीं। वे सभी अपने माता-पिता के मूल्यों और
आदर्शों का पालन करते थे। वासुदेव शरण अग्रवाल जी अपने परिवार से बहुत प्यार
करते थे। वे अपने बच्चों की शिक्षा और परवरिश पर विशेष ध्यान देते थे।
शिक्षा और कैरियर
वासुदेव शरण अग्रवाल जी का शिक्षण काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और लखनऊ
विश्वविद्यालय में हुआ। उन्होंने 1929 में एम.ए., 1941 में पी.एच.डी. और 1946
में डी.एल.इ.डी. की डिग्री प्राप्त की। उनका डॉक्टरेट थीसिस "पाणिनिकालीन
भारतवर्ष" पर आधारित था, जिसमें उन्होंने पाणिनि के अष्टाध्यायी को भारतीय
संस्कृति और दर्शन का आयना बताया।
उन्होंने अपने जीवन में अनेक विभागों और संस्थाओं में नेतृत्व का कार्य किया।
उन्होंने 1940 तक मथुरा पुरातत्व संग्रहालय का प्रबंधन किया। फिर उन्होंने 1946
से 1951 तक सेंट्रल एशियन एंटिक्विटीज म्यूजियम का निरीक्षण और भारतीय पुरातत्व
विभाग का नेतृत्व किया। उन्होंने 1951 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कॉलेज
ऑफ इंडोलॉजी में प्रोफेसर की भूमिका निभाई। उन्होंने 1952 में लखनऊ
विश्वविद्यालय में राधाकुमुद मुखर्जी व्याख्याननिधि के तहत व्याख्यान दिए।
उन्होंने भारतीय मुद्रापरिषद, भारतीय संग्रहालय परिषद, ऑल इंडिया ओरिएंटल
कांग्रेस, फाइन आर्ट सेक्शन आदि के अध्यक्ष भी रहे।
प्रमुख रचनाएँ
वासुदेव शरण अग्रवाल जी ने निबंध, आलोचना, शोध और सम्पादन के क्षेत्र में अनेक
प्रसिद्ध रचनाएं लिखी हैं। इनकी कुछ प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं -
इतिहास
- पाणिनिकालीन भारतवर्ष
- भारतीय संस्कृति का इतिहास
- भारतीय कला का इतिहास
- प्राचीन भारत
- हर्षचरित: एक सांस्कृतिक अध्ययन
- कला और संस्कृति
- नालंदा
- भारत का स्वर्ण युग
- भारत की खोज
- भारत का इतिहास
संस्कृत
- कालिदास: एक अध्ययन
- बाणभट्ट: एक अध्ययन
- संस्कृत साहित्य का इतिहास
- संस्कृत भाषा का इतिहास
साहित्य
- पद्मावत का आलोचनात्मक अध्ययन
- विद्यापति का काव्य
- हिंदी साहित्य का इतिहास
- आधुनिक हिंदी साहित्य
- हिंदी साहित्य की रूपरेखा
अन्य
- मेघदूत: एक अध्ययन
- शिक्षा और संस्कृति
- भारत की समस्याएं
- भारत का भविष्य
यह वासुदेव शरण अग्रवाल जी की प्रमुख रचनाओं की एक छोटी सूची है। उन्होंने 50
से अधिक पुस्तकें और 100 से अधिक लेख लिखे हैं। उनकी रचनाएं भारत के इतिहास,
संस्कृति, कला और साहित्य का अध्ययन करने के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
भाषा और शैली
वासुदेव शरण अग्रवाल जी की भाषा शैली उनकी विद्वत्ता और बहुमुखी प्रतिभा का
प्रतिबिंब थी। उनकी भाषा सरल, सुबोध और प्रभावशाली थी। वे अपनी बात को स्पष्ट
और तार्किक तरीके से रखते थे। उनकी भाषा में गहन ज्ञान और अनुभव की झलक मिलती
थी।
उनकी भाषा शैली की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं -
सरल और सुबोध:
वे अपनी बात को सरल और सुबोध भाषा में रखते थे। वे आम आदमी की भाषा का प्रयोग
करते थे ताकि सभी लोग उनकी बात को समझ सकें।
प्रभावशाली: उनकी भाषा में एक अद्भुत प्रभाव था। वे अपनी बात को इस तरह से कहते थे कि वह
पाठक के मन में गहरी छाप छोड़ जाती थी।
गहन ज्ञान और अनुभव:
उनकी भाषा में गहन ज्ञान और अनुभव की झलक मिलती थी। वे इतिहास, संस्कृति, कला
और साहित्य के विद्वान थे और उनकी भाषा में इन विषयों की गहरी समझ दिखाई देती
थी।
तार्किक:
वे अपनी बात को तार्किक तरीके से रखते थे। वे अपने तर्कों को प्रमाणों के साथ
पेश करते थे।
व्यंग्यात्मक: वे कभी-कभी अपनी बात को व्यंग्यात्मक तरीके से भी रखते थे। वे अपनी बात को
व्यंग्य के माध्यम से अधिक प्रभावशाली बनाते थे।
वासुदेव शरण अग्रवाल जी की भाषा शैली हिंदी भाषा के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान
है। उनकी भाषा शैली ने हिंदी भाषा को समृद्ध बनाया है।
हिंदी साहित्य में योगदान
वासुदेव शरण अग्रवाल (1904-1967) हिंदी साहित्य के महान स्तंभ थे। वे एक
इतिहासकार, संस्कृतज्ञ, कला इतिहासकार और साहित्यकार थे। आपको बता दें कि
उन्होंने इतिहास, संस्कृति, कला और साहित्य के विभिन्न विषयों पर 50 से अधिक
पुस्तकें और 100 से अधिक लेख लिखे।
हिंदी साहित्य में उनका योगदान अमूल्य है। उन्होंने हिंदी भाषा को समृद्ध
बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी भाषा सरल, सुबोध और प्रभावशाली थी। वे
अपनी बात को स्पष्ट और तार्किक तरीके से रखते थे। उनकी भाषा में गहन ज्ञान और
अनुभव की झलक मिलती थी।
उनके कुछ महत्वपूर्ण योगदानों में शामिल हैं -
इतिहास: उन्होंने भारत के इतिहास पर कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं, जिनमें
"पाणिनिकालीन भारतवर्ष", "भारतीय संस्कृति का इतिहास", "भारतीय कला का इतिहास",
"प्राचीन भारत", "हर्षचरित: एक सांस्कृतिक अध्ययन", "कला और संस्कृति",
"नालंदा", "भारत का स्वर्ण युग", "भारत की खोज", "भारत का इतिहास" आदि शामिल
हैं।
संस्कृत: उन्होंने संस्कृत भाषा और साहित्य पर भी कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं,
जिनमें "कालिदास: एक अध्ययन", "बाणभट्ट: एक अध्ययन", "संस्कृत साहित्य का
इतिहास", "संस्कृत भाषा का इतिहास" आदि शामिल हैं।
साहित्य: उन्होंने हिंदी साहित्य पर भी कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं, जिनमें
"पद्मावत का आलोचनात्मक अध्ययन", "विद्यापति का काव्य", "हिंदी साहित्य का
इतिहास", "आधुनिक हिंदी साहित्य", "हिंदी साहित्य की रूपरेखा" आदि शामिल
हैं।
उनकी पुस्तकें भारत के इतिहास, संस्कृति, कला और साहित्य का अध्ययन करने के
लिए महत्वपूर्ण स्रोत मानी जाती हैं।
हिंदी साहित्य में उनका स्थान
वासुदेव शरण अग्रवाल जी हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। उनकी
पुस्तकों ने हिंदी भाषा को समृद्ध बनाया है। उनकी भाषा सरल, सुबोध और
प्रभावशाली है। वे अपनी बात को स्पष्ट और तार्किक तरीके से रखते थे। उनकी भाषा
में गहन ज्ञान और अनुभव की झलक मिलती थी।
उनकी पुस्तकें आज भी प्रासंगिक हैं और उन्हें दुनिया भर के लोग पढ़ते हैं। वह
हिंदी साहित्य के उन विद्वानों में से एक हैं जिनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा
सकता।
उनके जीवन और कार्यों पर कई शोध-प्रबंध और लेख लिखे गए हैं। वह हिंदी साहित्य
के एक प्रेरणा स्त्रोत हैं और उनका जीवन और कार्य युवा पीढ़ी के लिए अनुकरणीय
है।
पुरस्कार और सम्मान
हालांकि यह पुरस्कारों और सम्मानों की एक संक्षिप्त सूची है। वासुदेव शरण अग्रवाल जी को विभिन्न संस्थाओं और संगठनों द्वारा कई अन्य पुरस्कार और सम्मान भी प्रदान किए गए थे।
उनके कुछ महत्वपूर्ण पुरस्कारों के बारे में -
साहित्य अकादमी पुरस्कार: यह भारत का सबसे प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार है, जो विभिन्न भाषाओं में उत्कृष्ट साहित्यिक कृतियों के लिए दिया जाता है। वासुदेव शरण अग्रवाल जी को यह पुरस्कार "पाणिनिकालीन भारतवर्ष" पुस्तक के लिए मिला था, जो पाणिनि के अष्टाध्यायी के आधार पर लिखी गई एक ऐतिहासिक कृति है।
पद्म भूषण: यह भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है, जो कला, साहित्य, शिक्षा, विज्ञान, चिकित्सा, सामाजिक कार्य और अन्य क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है। वासुदेव शरण अग्रवाल जी को यह पुरस्कार इतिहास, संस्कृति, कला और साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए दिया गया था।
निधन
वासुदेव शरण अग्रवाल जी की मृत्यु 26 जुलाई, 1966 को हुई थी। उनके मरण का कारण विशेष रूप से पता नहीं है, लेकिन उनके जीवन के आखिरी वर्षों में उन्हें हृदय रोग और डायबिटीज की दिक्कत थी। उनके जाने से भारतीय साहित्य, संस्कृति और इतिहास के क्षेत्र में एक बड़ा नुकसान हुआ। उनके जाने के बाद उनकी पत्नी श्रीमती शारदा अग्रवाल ने उनकी कई रचनाओं को संपादित करके प्रकाशन कराया।
FAQs
वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म कब और कहां हुआ था?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म 7 अगस्त, 1904 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के खेड़ा गाँव में हुआ था।
वासुदेव शरण अग्रवाल के माता-पिता का नाम क्या था?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल के पिता का नाम विष्णु अग्रवाल और माता का नाम सीता देवी अग्रवाल था।
वासुदेव शरण अग्रवाल ने किस विश्वविद्यालय से एम.ए. की उपाधि प्राप्त की थी?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए. की उपाधि प्राप्त की थी।
वासुदेव शरण अग्रवाल ने किस विश्वविद्यालय से पीएच.डी. और डी.लिट. की उपाधि प्राप्त की थी?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल ने लखनऊ विश्वविद्यालय से पीएच.डी. और डी.लिट. की उपाधि प्राप्त की थी।
वासुदेव शरण अग्रवाल ने पीएच.डी. की उपाधि किस विषय पर प्राप्त की थी?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल ने पीएच.डी. की उपाधि ‘पाणिनिकालीन भारत’ नामक शोध-प्रबन्ध पर प्राप्त की थी।
वासुदेव शरण अग्रवाल की मृत्यु कब और कहां हुई थी?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल की मृत्यु 27 जुलाई, 1967 को वाराणसी में हुई थी।
वासुदेव शरण अग्रवाल की प्रमुख रचनाएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल की प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं-
निबंधों का संग्रह: पृथ्वी पुत्र, कल्पबृक्ष, कल्पलता, मातृभूमि, भारत
की एकता, वेद विद्या, कला और संस्कृति, वाग्बधारा, पूर्ण ज्योति आदि।
ऐतिहासिक व् पौराणिक निबंध: महापुरुष श्रीकृष्ण, महर्षि वाल्मीकि, और मनु।
आलोचना: पद्मावत की संजीविनी व्याख्या, हर्षचरित का संस्कृति अध्ययन।
शोध ग्रन्थ:
नवीन कालीन भारत।
ग्रन्थाधारित विवेचनात्मक अध्ययन: मेघदूत: एक
अध्ययन, हर्षचरित: एक सांस्कृतिक अध्ययन, पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पद्मावत (मूल
और संजीवनी व्याख्या), कादम्बरी: एक सांस्कृतिक अध्ययन।
वासुदेव शरण अग्रवाल को किस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल को 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जो उन्होंने पद्मावत की संजीविनी व्याख्या के लिए प्राप्त किया था।
वासुदेव शरण अग्रवाल ने किस ग्रन्थ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त किया था?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल ने पद्मावत की संजीविनी व्याख्या के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त किया था।
वासुदेव शरण अग्रवाल ने किस विश्वविद्यालय में राधाकुमुद मुखर्जी व्याख्याननिधि के तहत व्याख्यान दिए थे?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल ने लखनऊ विश्वविद्यालय में राधाकुमुद मुखर्जी व्याख्याननिधि के तहत व्याख्यान दिए थे।
वासुदेव शरण अग्रवाल ने किस ग्रन्थ का संपादन करके अपनी पत्नी को समर्पित किया था?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल ने महर्षि वाल्मीकि का संपादन करके अपनी पत्नी श्रीमती शारदा अग्रवाल को समर्पित किया था।
वासुदेव शरण अग्रवाल की पत्नी का नाम क्या था?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल की पत्नी का नाम श्रीमती शारदा अग्रवाल था।
वासुदेव शरण अग्रवाल का प्रमुख योगदान किस क्षेत्र में था?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल का प्रमुख योगदान भारतीय साहित्य, संस्कृति, कला और इतिहास के क्षेत्र में था।
वासुदेव शरण अग्रवाल ने किस ग्रन्थ का संस्कृति अध्ययन किया था?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल ने हर्षचरित का संस्कृति अध्ययन किया था।
वासुदेव शरण अग्रवाल की प्रथम रचना कौन सी थी?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल की प्रथम रचना मेघदूत: एक अध्ययन थी, जो 1951 में प्रकाशित हुई थी।
वासुदेव शरण अग्रवाल को किस विद्वान के शिष्य के रूप में जाना जाता है?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल को डॉ. रामचन्द्र शुक्ल के शिष्य के रूप में जाना जाता है।
वासुदेव शरण अग्रवाल ने किस ग्रन्थ का व्याख्यान माला लखनऊ विश्वविद्यालय में दिया था?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल ने पाणिनि का व्याख्यान माला लखनऊ विश्वविद्यालय में दिया था।
वासुदेव शरण अग्रवाल के द्वारा संपादित और प्रकाशित किए गए ग्रन्थों में से कौन सा ग्रन्थ उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुआ था?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल के द्वारा संपादित और प्रकाशित किए गए ग्रन्थों में से कादम्बरी: एक सांस्कृतिक अध्ययन ग्रन्थ उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुआ था।
वासुदेव शरण अग्रवाल के अनुसार, भारत की एकता का आधार क्या है?
उत्तर: वासुदेव शरण अग्रवाल के अनुसार, भारत की एकता का आधार भारतीय संस्कृति, धर्म, भाषा, इतिहास और राष्ट्रीय चेतना है।